Friday, April 6, 2012

नकारने के अधिकार की मुश्किल



नकारने के अधिकार की मुश्किल
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उम्मीदवारों को खारिज करने के मतदाता के अधिकार के हनन पर असंतोष जता रहे हैं संदीप पांडे l
 
 चुनाव कराने संबंधी अधिनियम (1961) की धारा 49 (ओ) के तहत भारतीय मतदाता को यह भी अधिकार दिया गया है कि यदि वह समझता है कि कोई भी प्रत्याशी उपयुक्त नहीं है तो अपना मत किसी को न दे और इस बात को प्रारूप 17 ए पर दर्ज कराए। यानी भारतीय नागरिक को मत देने के अधिकार के साथ-साथ मत न देने का भी अधिकार दिया गया है। कल्पना करें कि मतदाता सबसे अधिक वोट सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के पक्ष में देते हैं तो इसका अर्थ होगा कि उस चुनाव क्षेत्र में ज्यादातर मतदाता समझते हैं कि कोई भी उम्मीदवार चुना जाने लायक नहीं है। ऐसी दशा में चुनाव रद करके फिर से कराए जाने चाहिए जिसमें पिछली बार खड़ा कोई भी प्रत्याशी पुन: उम्मीदवार न बन सके। यही बात राजनीतिक दलों के लिए खतरे की घंटी है। कहीं ऐसा न हो कि बड़े पैमाने पर जनता राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों को खारिज करना शुरू कर दे। अधिकारी भी अभी वर्तमान व्यवस्था के बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। इसका प्रमाण है मतदान कराने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों का मतदाता के प्रति रवैया। 11 फरवरी, 2012 को गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के मुर्की कलां मतदाता केंद्र पर जब वकील खान अहमद जावेद एवं उनकी पत्नी राजदा जावेद ने इस अधिकार का इस्तेमाल करने की मंशा प्रकट की तो सेक्टर इंचार्ज ने बताया कि उसके पास प्रारूप 17 ए नहीं है। वह जावेद युगल से गुजारिश करने लगा कि वे इस विकल्प का इस्तेमाल न करें। दो घंटे तक बहस करने के बाद अंतत: जावेद युगल ने हार मान ली। 11 फरवरी को ही गोरखपुर में जरूर 97 लोग इस अधिकार का इस्तेमाल करने में सफल रहे, किंतु यह तभी संभव हुआ जब महाराणा प्रताप डिग्री कालेज के प्राचार्य प्रदीप राव ने मतदान केंद्र पर काफी हंगामा किया। बॉबी रमाकांत को लखनऊ पूर्वी क्षेत्र में कुछ देर भ्रमित करने के बाद अधिकारियों ने बताया कि उनके पास प्रारूप 17 ए उपलब्ध नहीं है। उनसे कहा गया कि मतदान की प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न न करें। अंतत: बॉबी को अपना मत किसी उम्मीदवार को देना पड़ा क्योंकि मत देने के लिए उनसे धोखे से शेष प्रक्रियाएं, जैसे रजिस्टर पर हस्ताक्षर कराना, उंगली पर स्याही लगाना आदि पूरी करा ली गई थीं। इसी मतदान केंद्र पर जब थोड़ी देर बाद राहुल द्विवेदी ने अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहा तो उनसे कहा गया कि जिस रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर रहे हैं वहीं लिख दें कि वे अपना मत किसी को नहीं देना चाहते। सीतापुर के हरगांव विधानसभा क्षेत्र से कुल 283 लोगों ने अपने सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के अधिकार का इस्तेमाल किया। क्या मतदाता जागरूकता इतनी ही है कि हम घर से निकल कर किसी को भी मतदान कर आएं? अधिकारियों को अभी यह लगता है कि यदि कोई मतदाता धारा 49 (ओ) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहे तो उनका काम बढ़ जाएगा। मत देना तो जागरूक मतदाता की पहचान है, लेकिन यदि आप किसी को मत न देने का अधिकार इस्तेमाल करना चाहें तो ऐसी टिप्पणी की जाती है कि क्या सबसे ज्यादा जागरूक आप ही हैं? या फिर यह कहा जाता है कि किसी को मत नहीं देना है तो यहां आए ही क्यों हो? इससे तो अच्छा होता कि घर बैठते। अधिकारियों की सोच इस मामले में अभी मतदाता के प्रति नकारात्मक है। इस विडंबना को सबसे अच्छी तरह उत्तर प्रदेश के एक ईमानदार आइएएस अधिकारी ने व्यक्त किया है। उनका कहना है कि चुनाव आयोग के प्रयासों से यह तो सुनिश्चित हो गया है कि मतदान निष्पक्ष और बिना गड़बड़ी के हो लेकिन जब जनता के सामने चुनने के लिए विकल्प ही ठीक न हो तो सही प्रक्रिया से अंतत: एक गलत व्यक्ति ही चुन कर आता है। अधिकारियों को यह समझना होगा कि सभी उम्मीदवारों को नकारना भी एक किस्म की राजनीति है। यह जनता की राजनीति है जो राजनीतिक दलों के खिलाफ जाती है। असल में देखा जाए तो भ्रष्ट एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को चुनाव के मैदान से बाहर करने का यह बहुत कारगर औजार हो सकता है। यदि जनता तय कर ले कि सभी अवांछनीय लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाए तो बड़े पैमाने पर लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। और राजनीतिक दल भी फिर इस डर से कि कहीं जनता उनके उम्मीदवारों को नकार न दे सही किस्म के लोगों को उम्मीदवार बनाना शुरू करेंगे। अभी तो उन्हें मालूम है कि जनता की मजबूरी है कि उसे उपलब्ध उम्मीदवारों में से ही किसी एक को चुनना है। इसलिए दल जनता की भावना को धता बताते हुए भ्रष्ट एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को ही उम्मीदवार बनाते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त कह चुके हैं कि अब वक्त आ गया है कि सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के अधिकार का क्रियान्वयन हो। इसका सबसे कारगर तरीका होगा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर आखिर में इस विकल्प हेतु एक बटन उपलब्ध कराना। दूसरा यह नियम बनाना कि यदि सबसे ज्यादा मत पाए उम्मीदवार से भी ज्यादा लोग सभी उम्मीदवारों को खारिज करने वाला बटन दबाते हैं तो चुनाव रद कर पुन: नए उम्मीदवारों के साथ मतदान कराया जाए, जिसमें पिछली बार खड़े प्रत्याशियों पर प्रतिबंध हो। इस प्रक्रिया से जनता अंतत: सही उम्मीदवार को चुन लेगी और तमाम अवांछनीय प्रत्याशी खारिज कर दिए जाएंगे। (लेखक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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